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क्या शिक्वा कैसी शिकायत

Shayari
Shayari
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खुदापरस्त न हुए भी ग़र, नूर-ए-खुदा महरूम कहाँ !
बद रहे या बदनाम हो आतिश, मेरे अल्लाह तू मुझसे दूर कहाँ !!

रह्म-ओ-करम-ए-खुदा कहाँ, हाकिम-ओ-शाहों का सरमाया !
दीन-ओ-इतिबार बस रहे कायम, जुदा-ए-रूह मेरी तू हुआ कहाँ !!

रस्म-ओ-रिवाज़-ए-ज़माना बहुत, दिल को मगर रहे कैद कैसे !
जुस्तजू-ए-इश्क को कहते काफ़िर, राह-ए-आशियाँ-ए-खुदा का और निशाँ कहाँ !!

करें कैसे शिकवा-ओ-शिकायत, खुद ही हुए हरीफ़ अपने !
हर क़दम न होता साथ ग़र, लिल्लाह हम फिर जाते कहाँ !!

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हरीफ़ = दुश्मन

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