Shayari
- 23 Posts
- 38 Comments
खुदापरस्त न हुए भी ग़र, नूर-ए-खुदा महरूम कहाँ !
बद रहे या बदनाम हो आतिश, मेरे अल्लाह तू मुझसे दूर कहाँ !!
रह्म-ओ-करम-ए-खुदा कहाँ, हाकिम-ओ-शाहों का सरमाया !
दीन-ओ-इतिबार बस रहे कायम, जुदा-ए-रूह मेरी तू हुआ कहाँ !!
रस्म-ओ-रिवाज़-ए-ज़माना बहुत, दिल को मगर रहे कैद कैसे !
जुस्तजू-ए-इश्क को कहते काफ़िर, राह-ए-आशियाँ-ए-खुदा का और निशाँ कहाँ !!
करें कैसे शिकवा-ओ-शिकायत, खुद ही हुए हरीफ़ अपने !
हर क़दम न होता साथ ग़र, लिल्लाह हम फिर जाते कहाँ !!
========
हरीफ़ = दुश्मन
Read Comments