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मुहोब्बत-ओ-मंजिल

Shayari
Shayari
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दफ्न-ओ-ज़िन्दगी हो जाए भी ग़र, नींद का फिर भी निशाँ कहाँ !
राह-ओ-मर्ग है खूबसूरत भी बहुत , दीदार-ए-मुहोब्बत पोशीदा कहाँ !!

ग़म नहीं जीने में तन्हा, बियाबाँ-ए-मुहोब्बत का गुरूर तो है !
है इश्क पोशीदा हर नक्श यहाँ, लिल्लाह तुझे फिर मैं ढूंढूं कहाँ !!

दुश्वार-ए-राह-ए-ज़िन्दगी बहुत, कहाँ मुमकिन हमसफ़र सर-ए-राह मिले !
बे-अंदाजः है ख़्वाहिश-ए-दिल-ए-आतिश, रहे बे-परवाह वो राह-ए-मुमकिन कहाँ !!

पते नहीं बनता, राह-ए-ज़िन्दगी है लम्बी बहुत !
मंजिलों की तलाश में फिर क्यूँ आतिश, फिरता रहा जाने कहाँ-कहाँ !!

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मर्ग = मौत , बियाबाँ = वीराना , पोशीदा = छुपा

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