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ज़राफ़त-ए-ज़िन्दगी

Shayari
Shayari
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शफाक़ सफैद चंद सफ़्हा-ए-ज़िन्दगी, रहता दर-उम्र गोशा-ए-दिल !
इक लम्हा लिखा कोई हिकायत-ए-जिग़र, मिट गया भी जैसे स्याह-ए-शब् !!

मिटाता चला अरमाँ-ओ-आरज़ू, आशियाँ-ए-अब्र मिले जो ग़र !
इक बस काग़ज़ों में निशाँ नहीं, जिंदा तो है आतिश हर शब् !!

ख़ुर्शीद-ए-सहर भी तन्हा ही जलता, दूर आसमाँ में यूँही उम्रभर !
इक बस अँधेरा ही हबीब रहा, मुन्तज़िर-ए-क़ासिद धरकता हर शब् !!

ज भी है ख़्वाब-ए-निगाह !
रुक्सत-ए-आलम से पेश्तर, मिले मुख्बिर-ए-यार आतिश कोई शब् !!

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गोशा = कोना, हिकायत = कहानी, अब्र = बादल, ख़ुर्शीद = सूरज,
हबीब = दोस्त, ज़राफ़त = मज़ाक, आलम = दुनिया

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