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होश-ए-निगाह

Shayari
Shayari
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होश-ए-निगाह कामिल थे, या बदहवास मैं अब हुआ !
इश्क-ए-फ़िज़ा कब हुआ मुक़र्रर, बेक़रार-ओ-दिल मैं कब हुआ !!

ज़ात से तेरी यकीं आता नहीं, ईमाँ-ए-कामिल कब आतिश हुआ !
मारूफ़-ए-राह से बचते भी ग़र, गुमनामी में भी गुज़र न हुआ !!

हिज्र-ए-मुहब्बत का दौर कहें, या तेरे मिलने से मैं खुशरंग हुआ !
दीदार-ए-ज़माना नहीं मुमकिन, मेरी धर्कानों में तेरा आशियाँ हुआ !!

रहा अल्लाह तेरा माज़ी-ए-सफ़र,  या शागिर्द-ए-शातान मैं अब हुआ !
जी गया तेरी निगाह-ए-कामिल, ऐ आतिश तू दफ़्न कब हुआ !!

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