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मज़हब-ए-आब

Shayari
Shayari
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मज़हब-ए-आब मुक़र्रर रखो, मुमकिन ऐ आदम ये कहाँ तुझसे !
राह-ए-दरया रहे तक्सीम-ए-मुल्क, कायम सरहदें कहाँ तुझसे !!

अब्र-ओ-आब कहाँ फर्क बरसता, बाम-ओ-ज़मीन क़ायनात तलक !
तिश्नगी-ए-आब को राहत, सरहद-ओ-मुल्क कब रहे तुझसे !!

कद्र-ओ-आब को जानता हुमा, मुल्क दर मुल्क ढूंढता इक बूँद फ़क़त !
ज़ात से तेरी क्या सरोकार रहा, कब नाम तेरा पुछा तुझसे !!

ज़मीन बांटी, आसमाँ बांटा, ना कर ख़ुदा को आतिश अब दूर तुझसे !!

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आब = पानी, बाम = छत

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