Shayari
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गुरुर-ए-इश्क रहे किस कद्र, गम्ज़ार-ए-आशिक जो हर लम्हा रहे !
महरूम -ए-इश्क कहाँ इंसां, फ़िज़ायों में ग़र माशूक़ रहे !!
नाक़ाम-ए-इश्क कहाँ आशिक, माशूक़ जिसका खुद ज़िन्दगी रहे !
लुत्फ़ उठाए हर लम्हा-ए-ज़िन्दगी, आशिक-ए-ख़ुदा फिर आतिश रहे !!
आब-ए-चश्म की इक्तिज़ा तो है, रोएँ हर लम्हा भी मुयस्सर नहीं !
यावाः हों ग़र दुश्वार-ए-ज़िन्दगी, साँसों का भी क्या हासिल रहे !!
मातम-ए-हिज्र रहे काश्ना-ए-दिल, धर्कनों पे कहाँ गुमाँ रहे !
डूबा जो ग़र तेरी इश्क में मौला, वही लम्हा तू आतिश जिंदा रहे !!
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इक्तिज़ा = ज़रुरत, आब-ए-चश्म = आँसू
मुयस्सर = मुमकिन, यावाः = ज़ाया, काश्ना = घर
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