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ज़िक्र-ए-दिल-ए-राख़

Shayari
Shayari
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भरी आह, के ज़ीस्त–ए–हुज्न का फ़साना आम हुआ !!

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फुरकत–ए–ग़म से आतिश, हर लम्हा जला हुआ !!

मयस्सर नहीं वाहीद-ए-रूह ग़र रहे भी इक लम्हा !
तसव्वुर-ए-जाना हासिल नहीं, हमसाया मगर हुआ !!

बंदिश-ए-जिस्म कुछ बरकरार-ए-ज़ीस्त रहा आतिश !
कहाँ कब्र ज़रूरी, ग़र विसाल-ए-यार से फुर्सत-ए-रूह न हुआ !!
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वाहीद = अकेला

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