Shayari
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क़त्ल-ए-मासूम से सुर्ख़ मेरा जिस्म यूँ हुआ !
कब हुआ मेरा लहू ज़र्द मुझे शऊर न हुआ !!
दर्द-ए-आलम के हर गोशे में मेरा नाम मुकम्मल है !
शोहरतों में होश रख मैं हर शब् मसरूफ हुआ !!
सितम्पेशा है कौन यहाँ, दहशतें ये किसकी हैं !
कैद-ए-हसरत-ए-मारूफ मैं, इक सितमगर ख़ुद हुआ !!
हर नक्श रहा इक हाय-हाय, “आतिश” मगर रहा बे-ख़बर !
रोशना-ए-ज़र से मदहोश यूँ, शब्-ओ-सेहर बे-मानी हुआ !!
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